बाबा के ख़रीदे फूफा और जेएनयू

बाबा के खेत बेच फूफा ख़रीदे गए थे| शहरी संभ्रांत और सरकारी अफ़सर फूफा| घरवालों की सोच बन चुकी थी कि घर की बेटियाँ अब किसानों के घर नहीं जाएँगी| हांडी की कालिख़ धोते पूरी ज़िन्दगी निकल जाएगी| अफ़सर दामाद खोजने का फायदा ये भी रहा कि गाँव-जवार में धाक तो जमेगी ही, केस-फ़ौजदारी में फँसने पर दामाद पैरवी करेगा| ख़ैर...

खेत बिके, नक़द गिना गया और एक बारात चढ़ कर हमारी बेटी ब्याह ले गया| उधर फुआ की ज़िंदगी अफ़सर के साथ शुरू हुई तो इसके कुछ दिनों बाद बाबूजी की ज़िंदगी भी शुरू हुई, किसान की बेटी के साथ| बाद में फूआ-फूफा के घर कान्वेंट वाले जन्मे और पीछे माँ-बाबूजी के राजकीय प्राथमिक विद्यालय वाले पैदा हुए| इन दोनों का मेल गर्मी की छुट्टियों में होता| तब कॉन्वेंट वाले झोला भर कर स्कूल जाने वाले, बोरा बिछा कर बैठने वालों से सहानुभूति रखते| घर-परिवार की सभा-समाज बैठता तो फूफा उनसे पोयम सुनवाते| बदले में हम भी सुना देते - " देबी जी देबी जी चाम-चटिया, देबी जी मर गइली उठाव खटिया ''

ज़िन्दगी बीतती गई| समय के साथ हिमालय की कितनी ही बरफ़ की चट्टानें गंगा-जमुना में बह गईं| वो बड़े हुए, हम भी हुए| वो डीम्ड गए, यहाँ गए, वहाँ गए| बाप के मालदार होने की इस ख़ुशफ़हमी के साथ कि हम कुछ भी ख़रीद सकते हैं| हमने आस-पास की तहसील के किसी 'छंगामल महाविद्यालय' टाइप की जगह से इतिहास में, हिन्दी और राजनीतिशास्त्र में बीए कर लिया| हमारी बहनों ने वहीं से साइकोलॉजी और होमसाइंस पढ़ लिया| अब बहनों के लिए उनकी ससुराल के बर्तन और हमारे लिए पुराने ट्रैक्टर की सीट हमारा इंतज़ार कर रहे थे|

हम सोचते थे कि हमारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है मगर पाने के लिए सारा आकाश है| पढ़ने के अलावे हमारा अपना कुछ भी नहीं है| इसे न चोर चुरा सकते हैं, न डकैत लूट सकते हैं और न ही भाई बाँट सकते हैं| ..तो, हमने क़िताबें पढ़ीं, अपनी और दूसरों की भी| बीबीसी रेडियो सुना| माँग-माँग कर पत्रिकाएँ पढ़ीं, यहाँ तक कि अख़बार के जिस टुकड़े में लपेट कर किसी के घर से हमारे घर प्रसाद आया, हमने अख़बार का वो टुकड़ा भी चाट डाला| हमारे अंदर की भी पढ़ने की आग जल गई|

हम जेएनयू आ गए और फूफा के बालकों के आगे अपनी अनगढ़ छाती को तान खड़े हो गए, 'हम तुमसे कम हैं क्या?' वाली मुद्रा में| फूफा की स्ट्रेट बालों वाली लड़की ने मुँह बिचकाया, प्रोटीन पाऊडर खाकर माचो भए भाई ने कहा 'जस्ट चिल'!

फूफा अलग परेशान कि कहाँ तक कहा था कि इन्हें 'बीए करवा दो, लगवा देंगे कहीं'| उनके अंदर हमारा कल्याण न कर सकने की पीड़ा थी| फुआ बेचारी क्या करे| किसी के अपने बच्चे तो अपने ही होते हैं लेकिन भतीते तो उसकी तरह उसके बाप-भाई का ख़ून ठहरे| ...और वो कहावत भी कहते हैं न कि 'माई-बेटा दुई जात फुआ-भतीजा एक'| अब जात की प्रगति को जात कैसे न सराहे...

अब जबकि सालों से हम फूफा की ज़िन्दगी के 'चोखेर बाली' हो गए थे, फूफा दुखी थे| सारे जीवन की कमाई, अपनी और बच्चों के लिए बनाई एक विशेष पहचान ख़त्म होने लगी थी| गाँव में पले उनके साले के लड़के उनके लालों की बराबरी जो करने लगे थे|

फिर एकदिन अचानक फूफा और उनके दोस्तों ने अपने बच्चों के हितों की रक्षा के लिए एक कड़ा फ़ैसला किया| फ़ैसला ये कि जहाँ की डिग्री दिखा-दिखा कर ये कीड़े-मकोड़े एड़ी अलगा कर उनके चाँद-सूरज जैसे बच्चों के बराबर उठ रहे थे उन्हें ही तोड़ दो| उन संस्थाओं की इज्ज़त लूट लो, छवि को तबाह कर दो और इन पिल्लों को उनकी औक़ात में ले आओ... इन अभावग्रस्त बच्चों की ज़िंदगी की सबसे क़ीमती चीज़ का भाव गिरा दो| इनसे इनका ग़ुरूर-ग़ुमान ले लो|

एक शाम फूफा के दोस्त कोट-टाई से लैस होकर टीवी पर डीएनए करने बैठे और हमारी सबसे अच्छी चीज़ पर हमला बोल दिया| फूफा ने जेएनयू को राष्ट्रविरोधी कहा, फूफा के दोस्त ने कहा और फिर दोस्तों के दोस्त ने कहा| फूफा के बच्चों ने, उनके दोस्तों और दोस्तों के दोस्तों ने कहा| सभी पैसे वालों ने पैसों से न ख़रीद सकी जाने वाली चीज़ को सस्ता, बेहूदा और देशविरोधी कहा| अब फूफा की मूँछों पर ताव है, उनकी शान दोबारा बहाल है| हमारे और अपने बच्चों के बीच वो जो गरिमामय गैप चाहते थे वो उन्हें मिल गई है| उनके बच्चे फूली छाती, सीधे बाल और लकदक गाड़ियों में जाने वाले भारत हैं, भारत का विकास हैं| हम दुबले-पतले, पैदल, चप्पलें घसीटते नक्सल हैं| उनका कहना है कि हम इस भारत को मिटा देंगे जिसे उनके बच्चे बचा रहे हैं|

अब एकबार फिर से हम समझते हैं कि संघर्ष ही हमारा रास्ता है, मेहनत ही एकमात्र उपाय| कुचक्र रचना तब भी उनका काम था षड्यंत्र रचना आज भी उनका काम है| एकबार फिर हम उठेंगे और वे फिर उठने न देने की कोशिश करेंगे| वे असफ़ल होंगे और असफल होते-होते किसी दिन सफल भी| उनकी ज़िंदगी यूँ ही बीतेगी| हम तब भी जीते थे अब भी जीतेंगे| वो जीतेंगे नहीं सिर्फ़ हराने की कोशिशें करेंगे, गिराने के प्रयास करेंगे| वो सदा ही मुँह की खाएँगे...

Write a comment ...